Bhavnaon Mein bahti Jindagi
भावनाओं में बहती जिंदगी
एक बार की कहानी है | एक महिला (रुचि) लगभग 36 साल के आसपास एक नए शहर वहां उसके पति का ट्रांसफर हुआ और वहां जाकर रहने लगी अब रहने लगे तो अकेले तो किसी से रहा नहीं जाता और रही महिला तो अकेले कैसे ही रहेंगे धीरे-धीरे वह देखने लगी लोगों को की कोई सही इंसान मिले जो उनके हिसाब का हो उनके तौर तरीके से चलता हो तो उनके साथ रहेंगे और साल भर बीतने ही वाला था| उसे ऐसी एक महिला अपने पड़ोस में आकर मिल गई तो फिर साथ में हंसना बोलना एक दूसरे को चाय पर बुलाना दोनों के बच्चे भी छोटे थे साथ-साथ समय बिताना बहुत दिन तक चलता रहा |
नई पड़ोसन का बच्चा छोटा था तो वह उसे महिला चलिए उसको नाम दे देते हैं रुचि से पूछने लगी कि तुम्हारी बिटिया बहुत अच्छे से बोलती है इसका स्कूल बहुत अच्छा होगा कभी तुम चलो तो मुझे भी ले चलना मैं तुम्हारे साथ चलूंगी और ऐसा होने लगा वे दोनों साथ-साथ आती ,साथ बात करती उनके बच्चे साथ-साथ खेलते|
मेरे पास कहां इतना समय है शायद यही बात कल्पना को चुभ गई कल्पना ने कहा अरे हम कौन सा सच में ही तुम्हारे घर में चाय पीने आने वाले थे चलिए यह बात यही काम हो जाती है अगला दिन अगला दिन आता है फिर कल्पना ने तो पूरी प्लानिंग बना रखी थी किसी और के साथ जाने की और न जाने उसकी इगो हर्ट हुई कि क्या हुआ वह जाकर रुचि के घर बैठ गई और एक जगह फोन लगाया रहती है मैंने तो एबीसी कंपनी की मेंबरशिप ले रखी थी मैं उन्हें बार-बार कि हमें तीन रातें दो दिन की रिजर्वेशन करवा दे पर वह करवा ही नहीं पा रहे हैंथ खेलने और घुलाते मिलते आपस में बहुत महीना तक ऐसा ही चला रहा और वे दोनों खुश रही फिर धीरे-धीरे चीज बदलने लगे न जाने क्या हुआ एक दिन कल्पना ने फोन पर रुचि से कहा अरे तुम के ख ग शहर की हो ना वहां तो बहुत अच्छी जगह है तुम अगले हफ्ते घर जा रही हो क्यों ना हम तुम्हारे साथ चल पड़े आपके घर में चाय पियेंगे अब रुचि थी थोड़ी सीधी सीधी मसाज की सीधा-सीधा तो उसने भी सीधे से कह दिया अरे मैं तो रिश्तेदारी में और फिर उसने अपनी किसी सहेली को भी फोन कर वही रुचि के सामने बैठे-बैठे अरे मैं तो यहां रुचि के घर बैठी हूं मैं इसकी जगह का सारा पता भी कर दिया कि कहां-कहां और मैं इसी के सामने अपनी मेंबरशिप वालों को भी फोन कर पर उन्होंने मुझे जवाब नहीं दिया कि रिजर्वेशन कब तक होगी अब यह किस्सा भी यहां खत्म हो जाता है आज के दिन अब आ गया तीसरा दिन तीसरे दिन जब रुचि खुद जाकर कल्पना से पूछता है की कल्पना क्या तुम्हारी रिजर्वेशन हो गई जाने की तो रुचि रहती है अरे हमारे मेंबरशिप वाले तो फ्रॉड निकले हमारी कहां रिजर्वेशन हुई हमारा तो जाने का कैंसिल हो गया अब हम जाएंगे जयपुर और आज के आगे से फिर रुचि का दिमाग चलना शुरू होता है की जो यह कल्पना है यह सीधी शादी नहीं यह तो बहुत होशियार होशियार महिलाएं महिला है और फिर क्या था फिर तो कल्पना ने अपना ऐसा कैरेक्टर दिखाना शुरू कर जिसकी कोई हिसाब नहीं था एक दिन एक गिफ्ट लाने की बात हुई तो अक्सर रुचि रुचि कल्पना अक्सर फोन करके कल्पना रुचि से पूछा करती तैयारी क्या देना है क्या देना है क्या देना है और रूचित थ्योरी बेचारी सीरीज रुचि रहती थी अरे आप क्या दोगे कितने तक का दोगे तो कल्पना रहती है ना मैं तो ढाई सौ रुपए का दूंगी तो रुचि कम बोलने वाली थी उसने कुछ वहां पर जवाब नहीं दिया और खाने बस चुपचाप से वहां चली जिससे चली आई फिर दोनों पड़ोस ने आपस में घूमने के लिए बाहर निकलते हैं फिर गिफ्ट पर कुछ बात चलती है तो इस बार कल्पना अपने पति को फोन लगाती है और कहती है अरे सुनते हो वह गिफ्ट लाना है बर्थडे पार्टी का इनविटेशन आया है और रुचि को बताने लगी अरे हमने तो ढाई सौ रुपए का एक मैग्नेट वाला के बोर्ड ले लिया है लोकल मार्केट से आपको कुछ मंगवाना हो तो मंगवा लीजिए आप जो आइंस्टीन वाली किट देती रहती है ना सबको वह आती है 450 की मार्केट से और उसे दिन से जैसे रुचि के सामने से तो व्यक्तित्व का पर्दा ही है गया हो पर बिचारी रुचि क्या करें रुचि है अपने व्यवहार से विपक्ष वह है सरलता से जीवन जीने वाली ना किसी से उलझना ना किसी से बात करना और कल्पना टिहरी चालक चंद चापलूस्तर किस्म की न जाने इनका क्या होगा आगे अगर आपको यह कहानी सुनाने में अच्छी लगी हो तो इसे लाइक शेयर करेगा और आपका भी कभी किसी के साथ ऐसा कुछ एक्सपीरियंस रहा हो तो मुझे कमेंट सेक्शन में जरूर लिखिएगा धन्यवादशादी भी हमें जा रही हूं