परिचय : रोज की कहानी रोज (कहानी दैनिक जीवन की)
मैं भी एक सोच हूं एक आवाज हूं
कहानियां जैसे सुनती और सुनाती एक आवाज हूं
कभी यहां देखा तो कभी वहां देखा सोचा यह भी और वह भी
कभी समझ लिया यह तो कभी वह समझ लिया इस सोच समझ से बहुत कुछ सीखा भी और काफी
कुछ झुठला भी दिया लेकिन वह तो है कशमकश जिसका नाम
वह यही रही क्या दूसरों का करा दूसरों का दिखाया दूसरों का बोला सही है
या मेरी खुद की सोच खुद का देखना खुद का महसूस करना वह सही है
यह कशमकश खत्म ना होती और ऐसे ही बन जाती हूं मैं रोज की कहानी कहानी रोज की |
मैं हूं सुलोचना|
25 वर्ष में शादी हुई और जैसे दुनिया अलग ही दिखने लगी ससुराल में मेरे पीहर से अलग ही माहौल था |
पीहर में दिनचर्या के नाम पर सुबह 6:30 उठना नहाना नाश्ता करना अपने ऑफिस जाना और शाम को 6:30 घर आना खाना – खाना थोड़ा बहुत किचन में मम्मी का हाथ बटाना बस यही किया लेकिन ससुराल जाकर एक अलग ही नजरिया एक नई सोच देखने को मिली |
आज भी याद है मुझे एकदम अच्छे से याद है जब शादी के बाद पहली बार अपने किसी रिश्तेदार के घर गए थे | तो रास्ते में मेरी सासू मां ने एक किस्सा सुनाया अपने किसी रिश्तेदार का तो वह कहने लगी पहले जमाने में जल्दी शादी कर देते थे और उस समय लड़कियों की उम्र महज 7 , 11 , 12 साल रहती थी | वह इतनी छोटी-छोटी बच्चिय| बहू बनकर दूसरों के घर जाती थी और अपने किसी रिश्तेदार का नाम लेते हुए उन्होंने कहा कि वह बता रहे थे कि उनकी मां की जब शादी हुई तो वह सिर्फ 7 वर्ष की थी एक दिन घर पर उनकी दादी ने उनकी मां से कहा होगा की पट्टानडे बना दो तो इस पर उस 7 साल की बच्ची ने कहा कि मुझे पट्टानडे बनाने नहीं आते तो उसकी सास ने गर्म तवे पर उसके हाथ लगा दिए और साथ में ताना दिया कि अपने मायके से कुछ सीख कर नहीं आई फिर बातें ऐसे ही पुराने किस्सों से चलती गई की पहले समाज में बहुत सी कुरीतियां प्रचलित थी | रूढ़िवादी ता थी बहू को लेकर सांसों को लेकर बहुत ही ऐसी सब बातें हुई |
थोड़ी देर में फिर से उन्होंने अपनी बुआ का जिक्र किया और उनका जिक्र करते हुए कहा कि वह कहती थी की बहू की शक्ल प्यारी नहीं होती काम या कार्य प्यार होता है| फिर हम रिश्तेदारों के घर पहुंच गए और खाना खाया मनोरंजन , बातें की घर के आसपास की जगह देखी और घर लौट आए फिर सब अपने-अपने कमरों में जाकर सो गए |
लेकिन मेरी सोच अभी भी वही मेरी सासू माता की बातों में अटकी थी क्या यह पहले जमाने की ही सोच है की बहू का काम प्यार होता है या आज भी ऐसा है हमेशा कहीं पर भी कोई भी बात हो तो अक्सर कह दिया जाता है और सुनने में भी आता है “ कि यह तो घर की बेटी है यह अपने घर जाएगी वह संभालेगी अपना घर संभालेगी यहां तो हमारी बहू है उसका घर है वह काम करेगी “|
ऐसी ही बातें कहीं ना कहीं दिल दिमाग और मन मे घर कर जाती है और महिलाएं अक्सर खुद के लिए जीवन जीना छोड़ देती हैं अपने परिवार की जरूरत को पूरा करने के लिए ही अग्रसर रहती है और अपने को भूल जाती है |
तो आशा करती हूं आपको मेरा blog पढ़ने में अच्छा लगा होगा | आप भी मुझे कमेंट सेक्शन में कमेंट करके बताएं कि आपने अपने ससुराल जाकर कौन सी नई-नई बातें सुनी थी ऐसी बातें जरूर लिखकर भेजिएगा जिनसे आपके जीवन पर फर्क पड़ा हो|
धन्यवाद |
Well said
Good
Waiting for more posts .
Nice work